तुलसीदास

हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र गोस्वामी तुलसीदासजी भक्तिकाल कीसगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथकवि,भक्त तथा समाजसुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। इनका जन्मसं.१५८९ को बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नामआत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक कीपुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी रत्नावली से अत्याधिक प्रेम के कारणतुलसी को रत्नावली की फटकार " लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" सुननीपड़ी जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया । पत्नी के उपदेश से तुलसी केमन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे,जिन्होंने इन्हे दीक्षा दी। इनका अधिकाँश जीवन चित्रकुट,काशीतथा अयोध्या में बीता । इनका देहांत सं.१६८० में काशी के असी घाट पर हुआ -
संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर । ।
तुसलीदास की अब तक तीन दर्ज़न से अधिक पुस्तकें प्राप्त हो चुकी है,किंतु उनमें १२ ही प्रमाणिक मानी गई है। इनका नामनिम्न है - १.दोहावली २.कवितावली ३.गीतावली ४.कृष्ण गीतावली ५.विनय पत्रिका ६.रामचरितमानस इनका सर्वश्रेष्ठग्रन्थ है। इसकी कथा ७ कांडों में विभक्त है। इसका रचनाकाल सं.१६३१ माना गया है । ७.रामलला नहछू ८.वैराग्य संदीपिनी९.बरवै रामायण १०.पार्वती मंगल ११.जानकी मंगल १२.रामज्ञा प्रश्न
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इनके महत्व के सम्बन्ध में लिखते है - "तुलसी का महत्व बताने के लिए विद्वानों ने अनेकप्रकार की तुलनात्मक उक्तियों का सहारा लिया है। नाभादास ने इन्हे कलिकाल का वाल्मीकि कहा था, स्मिथ ने इन्हे मुग़लकाल का सबसे बड़ा व्यक्ति माना था । ग्रियस्रन ने इन्हे बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक कहा था और यह तो बहुतलोगो ने बहुत बार कहा है कि उनकी रामायण भारत की बाइबिल है। इन सारी उक्तियों का तात्पर्य यही है की तुलसीदासअसाधारण शक्तिशाली कवि ,लोकनायक और महात्मा थे।" महात्मा तुलसीदास सचमुच ही हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य थे। पराधीनता के समय में एक ओर उन्होंने "पराधीन सपुने सुख नाही" , की बात की तो दूसरी रामराज्य का आदर्श स्थापित करपराधीन भारत की संघर्ष की प्रेरणा दी ।
गोस्वामी तुलसीदास के समस्त साहित्य का प्रमुख विषय राम भक्ति ही है। राम के शील ,शक्ति और सौन्दर्य से सुसज्जितलोक रक्षक रूप का चित्रण करना तुलसी का प्रमुख उद्देश्य है। तुलसीदास ने अपने समय के प्रचलित प्रायः सभी शास्त्रीय तथालोक शैलीओं में काव्य रचना की है। भाषा की दृष्टि से तुलसीदास का ब्रज और अवधी पर सामान रूप से अधिकार है। स्वामी,सेवक ,भाई ,माता,पिता ,पत्नी और राजा के उच्चतम आदर्शो का एकत्र मिलन ,गोस्वामी तुलसीदास के कालजयी साहित्यमें ही हो सकता है।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें