सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

हिन्दी का नामकरण

हिन्दी का नामकरण


‘हिन्दी’ शब्द का प्रयोग फारस और अरब से माना जाता है। वास्तव में संस्कृत शब्द ‘सिंधु’ से ‘हिन्दी’ शब्द उद्भूत हुआ है। यह सिंध नदी के आसपास की भूमि का नाम है। ईरानी में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ होता है, इसलिए ‘सिंधु’ का रूप ‘हिंदू’ हो गया तथा ‘हिंद’ शब्द पूरे भारत के लिए प्रयुक्त होने लगा और प्रकारांतर से ‘हिन्दी’ शब्द अस्तित्व में आया।
‘हिन्दी’ शब्द का प्रयोग अमीर खुसरो ने भी किया। अमीर खुशरो तुर्क थे, लेकिन वे भारत में पैदा हुए थे। 1317 ई. के आसपास पैदा हुए अमीर खुसरो का कहना था-‘‘चूँकि मैं भारत में पैदा हुआ हूँ अतः मैं यहाँ की भाषा के संबंध में कुछ कहना चाहता हूँ। इस समय, यहाँ प्रत्येक प्रदेश में, ऐसी विचित्र एवं स्वतंत्र भाषाएँ प्रचलित हैं जिनका एक-दूसरे से संबंध नहीं है। ये हैं-हिन्दी (सिंधी), लाहौरी (पंजाबी), कश्मीरी- डूगरों (जम्मू के डूगरों) की भाषा, धूर समुंदर (मैसूर की कन्नड़ भाषा), तिलंग (तेलुगु), गुजरात, मलाबार (कारो मंडल तट की तमिल), गौड़ (उत्तरी बँगला), बंगाल, अवध (पूर्वी हिन्दी), दिल्ली तथा उसके आसपास की भाषा (पश्चिमी हिन्दी)। ये सभी हिन्दी की भाषाएँ हैं, जो प्राचीन काल से ही जीवन के सामान्य कार्यों के लिए, हर प्रकार से, व्यवह्वत होती आ रही हैं।”
 
एक अन्य स्थान पर हिन्दी की चर्चा करते हुए अमीर खुसरो लिखते हैं-‘‘यह हिन्दी की भाषा है।” ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ वास्तव में खुसरो का संस्कृति से तात्पर्य है, न कि उस भाषा से जिसे आज हम इस नाम से अभिहित करते हैं। आगे इसी संबंध में वे लिखते हैं:
                                                                ‘‘यदि तथ्य को ध्यान में रखकर गंभीरता से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हिन्दी पारसी (फारसी) से निम्नकोटि की नहीं है। यह अरबी की अपेक्षा जिसका सभी भाषाओं में प्रमुख स्थान है, निम्नकोटि की है, भाषा के रूप में अरबी का एक पृथक स्थान और कोई भी अन्य भाषा इसके साथ सम्मिलित नहीं की जा सकती। शब्द भंडार की दृष्टि से पारसी अपूर्ण भाषा है और बिना अरबी के छौंक के यह रुचिकर प्रतीत नहीं हो सकती। चूँकि अरबी विशुद्ध तथा पारसी मिश्रित भाषा है, अतः यह कहा जा सकता है कि एक आत्मा है तो दूसरी शरीर। अरबी में कुछ भी सम्मिलित नहीं किया जा सकता, किंतु फारसी में सब प्रकार का सम्मिश्रण संभव है।”
 
‘‘हिन्द की भाषा अरबी के समान है, क्योंकि इसमें किसी प्रकार का मिश्रण नहीं किया जा सकता। यदि अरबी में व्याकरण तथा वाक्य-विन्यास है तो हिन्दी में भी उससे एक अक्षर कम नहीं है। यदि यह प्रश्न करें कि हिन्दी में भी क्या अलंकार शास्त्र तथा विचार-प्रकाशन के अन्य विज्ञान हैं तो इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि इस संबंध में भी वह किसी तरह से न्यून नहीं है। जिस किसी व्यक्ति ने इन तीनों भाषाओं को अधिकृत कर लिया है, वह यह कह सकता है कि मैं इस संबंध में कुछ भी गलत तथा अतिशयोक्तिपूर्ण बात नहीं कर रहा हूँ।”
 
1886 ई. में वियना की ओरियंटल कांग्रेस ने तत्कालीन भारत सरकार से यह अनुरोध किया था कि वह विधिवत् भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण कराए। उसी के अतर्गत बाद के दिनों में जॉर्ज ग्रियर्सन ने भारत का विस्तृत भाषा-सर्वेक्षण किया अथवा करवाया, जो हमारे लिए इस विषय से संबंधित एक बड़ी देन है। ग्रियर्सन ने इस संबंध में स्पष्ट किया है-‘‘विभिन्न स्थानीय सरकारों से परामर्श के पश्चात् मद्रास तथा बर्मा प्रदेशों एवं हैदराबाद एवं मैसूर राज्यों को इस सर्वेक्षण की सीमा से पृथक रखने का निर्णय लिया गया, ताकि इसके अंतर्गत हमारे भारतीय साम्राज्य की कुल 29 करोड़ 40 लाख जनसंख्या में से 22 करोड़ 40 लाख वाली आबादी का भाग जिसमें पश्चिम से पूर्व तक बलोचिस्तान, पश्चिमोत्तर सीमांत, कश्मीर, पंजाब, बंबई प्रेसीडेंसी, राजपूताना एवं मध्य भारत, मध्य प्रदेश तथा बरार, संयुक्त प्रदेश आगरा व अवध बिहार एवं उड़ीसा, बंगाल तथा असम प्रदेश सम्मिलित हैं, आ सके।”
 
1929 ई. की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 31 करोड 60 लाख थी। इनमें 29 करोड़ लोगों की भाषा का सर्वेक्षण करते हुए जॉर्ज ग्रियर्सन ने पाया कि भारत में विभिन्न भाषाओं और बोलियों की संख्या 875 है। हालाँकि उनमें 179 भाषाओं और 524 बोलियों के नाम ग्रियर्सन ने दिए हैं।

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