गुरुवार, 3 मार्च 2011

अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध"


अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध"

अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔधद्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और गद्यकार है।इनका जन्म १५ अप्रैल सन १८६५ को आजमगढ़ जिले के निजामाबाद कस्बे में हुआथा। इनके पिता का नाम भोलासिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थताके कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन  हो सका अतः इन्होने घर पर हीउर्दू,संस्कृत ,फारसी,बंगला एवं अंग्रेजी का अध्ययन किया। १८८३ में ये निजामाबादके मिडिल स्कूल के हेडमास्टर हो गए। १८९० में कानूनगो की परीक्षा पास करने के बादआप कानूनगो बन गए। सन १९२३ में पद से अवकाश लेने पर काशी हिंदूविश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने   मार्च ,सन १९४७ को इनका निधन हो गया।
हरिऔध जी पहले ब्रज भाषा में कविता किया करते थे,किंतु द्विवेदी जी के प्रभाव सेखड़ी बोली के क्षेत्र में आए,और खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रयुक्त किया। ये भारतेंदु के बाद सबसे अधिक प्रसिद्धकवि थे,जो नए विषयों की काव्य जगत में स्थापना की। इनके साहित्य पर भारतेंदु युग की प्रविर्तियों की छाप स्पष्ट है।हरिऔध जी के वर्ण्य-विषय में विविधता है। इनके काव्य में जहा एक ओर भावुकता है ,वही दूसरी ओर बौद्धिकता कासमावेश भी है। हरिऔध जी का भाषा पर पूर्ण अधिकार है। इनमे सरल से सरल भाषा तथा कठिन भाषा लिखने की क्षमताथी। खड़ी बोली एवं ब्रज भाषा दोनों पर इनका समान अधिकार था। हिन्दी की खड़ी बोली के सार्थक एवं समर्थ प्रयोग परजितना इनका अधिकार रहा,उतना इनके युग में शायद ही कोई कवि रहा हो। इनकी भाषा प्रमुख रूप से संस्कृत ग्रभित औरउर्दू -फारसी मिश्रित हिन्दुस्तानी थी।
"प्रियप्रवासइनका आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रथम सफल महाकाव्य है। इसकी कथावस्तु का मूलाधार श्रीमद्भागवत कादशम स्कंध है,जिसमे श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनके यौवन ,कृष्ण का ब्रज से मथुरा को प्रवास और लौट आना वर्णित है।सम्पूर्ण कथा ,दो भागों में विभाजित है  पहले से आठवें सर्ग तक की कथा में कंस के निमंत्रण लेकर अक्रूर जी ब्रज में आते हैतथा श्रीकृष्ण समस्त ब्रजवासियों को शोक में छोड़कर मथुरा चले जाते है। नौवें सर्ग से लेकर सत्रहवें सर्ग तक की कथा मेंकृष्ण ,अपने मित्र उद्दव को ब्रजवासियों को सांत्वना देने के लिए मथुरा भेजते है। राधा अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपरउठकर मानवता के हित के लिए अपने आप को न्योछावर कर देती है। राधा की प्रसिद्ध उक्ति है-
"प्यारे जीवें जगहित करें ,गेह चाहे  आवें'
इस महाकाव्य में कृष्ण एवं राधा का जो रूप वर्णित हुआ है,साधरण परंपरागत रूप से भिन्न है। कृष्ण का चरित्र जनसाधारण के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है। द्विवेदी युग में देश -प्रेम ,स्वाधीनता ,विश्व बंधुत्व ,मानवतावाद और सुधारवाद कीजो लहर चली ,उसका स्वर प्रियप्रवास में सुनाई पड़ता है। शिवदान सिंह चौहान का कहना है कि " प्रियप्रवास में कृष्ण अपनेशुद्ध मानव रूप में विश्व कल्याण के काम में रत एक जन नेता के रूप में अंकित किए गए है"। श्रीधर पाठक ने प्रियप्रवास केसम्बन्ध में लिखा है-
दिवस के अवसान समे मिला। । 
"प्रियप्रवासअहो प्रिय आपका । 
अमित मोद हुआ चख कर चित्त को। । 
सरस स्वाद -युता कविता नई । । 
हरिऔध जी कि अन्य काव्य कृतियों में "वैदेही वनवासप्रमुख है ,किंतु इसमे काव्य के किसी नवोन्मेष का अभाव है

रचना कर्म :-
महाकाव्य - प्रियप्रवास ,वैदेही वनवास ।
मुक्तक काव्य - चोखे चौपदे , चुभते चौपदे ,कल्पलता ,बोलचाल ,पारिजात ,हरिऔध सतसई ।
उपन्यास : ठेठ हिन्दी का ठाठ ,अधखिला फूल
आलोचना : कबीर वचनावली,साहित्य सन्दर्भ ,हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास ।
नाटक : रुकिमणि परिणय ,प्रदुम्न विजय व्यायोग ।

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