गुरुवार, 3 मार्च 2011

गजानन माधव "मुक्तिबोध"


गजानन माधव "मुक्तिबोध"


गजानन माधव "मुक्तिबोध" : एक परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि गजानन माधव "मुक्तिबोधका जन्म १३नवम्बर १९१७ को श्योपुर में ग्वालियर के निकट हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग केइंस्पेक्टर थे और उनका तबादला प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढाई मेंबाधा पड़ती रहती थी। सन १९३० में मुक्तिबोध जी ने मिडिल की परीक्षा ,उज्जैन से दी औरफेल हो गए । कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना के रूप मेंस्वीकार किया है । मुक्तिबोधअपने दोस्तों के साथ रात -बेरात शहर घूमने को निकल जाते थे। बीडी पीने की आदत शायदवही से पड़ी । रात का भयानक सन्नाटा ,रहस्यमयी वातावरण ,जुर्मो का अँधेरा संसार जो उनकी कविता में है ,रात को घूमनेके कारण ने भी ऐसे बिम्बों को सजोने में मदद की होगी । इसके बाद मुक्तिबोध किसी तरह संभले और उनकी पढाई कासिलसिला ठीक ढंग से चला और साथ ही जीवन के प्रति उनकी नई संवेदना और जागरूकता बढ़ने लगी । मुक्तिबोध जी,उज्जैन में पढ़ते हुए १९५३ में इन्होने साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया। सन १९३९ में इन्होने शांताजी से प्रेम विवाहकिया

मुक्तिबोध जी ने छोटी आयु में बडनगर के मिडिल स्कूल में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। इसके बाद शुजालपुर,उज्जैन,कलकत्ता,इंदौर ,बम्बईतथा बनारस आदि जगहों पर नौकरिया की। उन्होंने लिखा है कि "नौकरिया पकड़ता और छोड़तारहा । शिक्षक ,पत्रकार ,पुनः शिक्षक ,सरकारी और गैर सरकारी नौकरिया। निम्न -मध्यवर्गीय जीवन,बाल -बच्चे ,दवादारू,जन्म -मौत में उलझा रहा
मुक्तिबोध की रूचि अध्ययन -अध्यापन,पत्रकारिता और समसामयिक राजनितिक एवं साहित्य के विषयों पर लेखन मेंथी। सन १९४२ के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा को ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतनामजबूत हुई। आजीवन गरीबी से लड़ते हुएऔर रोगों का मुकाबला करते हुए अंततः ११ सितम्बर १९६४ को इनका देहांत होगया
डॉ.नामवर सिंह जी के शब्दों में - "नई कविता में मुक्तिबोध की जगह वही है ,जो छायावाद में निराला की थी। निराला के समान ही मुक्तिबोध ने भी अपनी युग के सामान्य काव्य-मूल्यों को प्रतिफलित करने के साथ ही उनकी सीमा की चुनौती देकर उस सर्जनात्मक विशिषटता को चरितार्थ किया, जिससे समकालीन काव्य का सही मूल्याकन हो सका ।" मुक्तिबोध जी की रचनाओ में एक स्वस्थ सामाजिक चेतना ,लोक मंगल भावना तथा जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान है। काव्य -सृजन के प्रति इनका दृष्टिकोण सर्वदा प्रगतिशील रहा है, अतः इन्हे आधुनिक हिन्दी कविता के बाद के किसी संकरे कटघरे में सीमित करना उचित नही :
मै अपने से ही सम्मोहित ,मन मेरा डूबा निज में ही
मेरा ज्ञान निज में से ,मार्ग निकाला अपने से ही
मै अपने में ही जब खोया ,तो अपने से ही कुछ पाया
निज का उदासीन विश्लेषण आँखों में आंसू भर लाया। "
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"पूरी दुनिया साफ़ करने के लिए मेहतर चाहिए -
वह
 मेहतर मै नही हो पाता। "

रचना - कर्म :
काव्य : चाँद का मुँह टेढा हैभूरी भूरी खाक धूल
आलोचना-साहित्य : कामायनी :एक पुनर्विचा ,भारत : इतिहास और संस्कृतिनई कविता का आत्म संघर्ष तथा अन्यनिबंध ,नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र ।
कथा-साहित्य : काठ का सपनाविपात्रसतह से उठता आदमी

यह हिन्दी साहित्य के लिए शर्म की बात है कि ऐसे प्रतिभावान कवि की जीवन भर भरसक उपेक्षा हुई और उनकी कोईकाव्य-पुस्तक उनके जीवित रहते प्रकाशित नही हुई

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