पहला पानी - केदारनाथ अग्रवाल की कविता
केदारनाथ अग्रवाल जी, आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख स्तम्भ है। उनके द्वारा प्रकाशित काव्य -कृतियों में युग की गंगा , नींद के बादल , आग का आइना , पंख और पतवार तथा आत्म गंध आदि प्रमुख है। उन्हें साहित्य अकादमी ,सोबियत लैंड नेहरु , मैथलीशरण गुप्त आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनकी पुण्य तिथि के अवसर पर हिंदीकुंज में उनकी प्रसिद्ध कविता 'पहला पानी' प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है कि आप सभी को यह पसंद आएगी ।पहला पानी गिरा गगन सेउमँड़ा आतुर प्यार,हवा हुई, ठंढे दिमाग के जैसे खुले विचार ।भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,भीगा अनभीगे अंगों कीअमराई का नेहपात-पात की पाती भीगी-पेड़-पेड़ की डाल,भीगी-भीगी बल खाती हैगैल-छैल की चाल ।प्राण-प्राणमय हुआ परेवा,भीतर बैठा, जीव,भोग रहा हैद्रवीभूत प्राकृत आनंद अतीव ।रूप-सिंधु कीलहरें उठती,खुल-खुल जाते अंग,परस-परसघुल-मिल जाते हैंउनके-मेरे रंग ।नाच-नाचउठती है दामिनेचिहुँक-चिहुँक चहुँ ओरवर्षा-मंगल की ऐसी है भीगी रसमय भोर ।मैं भीगा,मेरे भीतर का भीगा गंथिल ज्ञान,भावों की भाषा गाती हैजग जीवन का गान ।
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